विदा हो रहा वह मनोभाव जो खुद व्यथा की कहानी है
जीना तुम सिर्फ सर उठाकर वरना सब फिर बेमानी है
जीना तुम सिर्फ सर उठाकर वरना सब फिर बेमानी है
आना-जाना अगर नियति है तो यह प्रयास नादानी है
अपनी कश्ती खुद संभालो मौसम दिख रहा तूफानी है
अपनी कश्ती खुद संभालो मौसम दिख रहा तूफानी है
खेल नियंता का सतत यहाँ, सुःख-दुःख तो बस पानी है
हर कंकर पर एक लहर उठती, जो समझा वही ज्ञानी है
हर कंकर पर एक लहर उठती, जो समझा वही ज्ञानी है
जो सोचता वही है पाता मिटती कहाँ कोई निशानी है
मिट्टी खुदमें मिली बारम्बार जीवन सतत रवानी है
मिट्टी खुदमें मिली बारम्बार जीवन सतत रवानी है
हो सके तो समझना जर-जीवन मेला सबकी जुबानी है
क्या गीता क्या हो कुरान सरगम वही शाश्वत पुरानी है
-डॉ अभय
क्या गीता क्या हो कुरान सरगम वही शाश्वत पुरानी है
-डॉ अभय
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