आज बहती हुआ हवा का रुख कुछ अलग है
लुटे पिटे है संसार, अफ्फाओ का बाजार गर्म है
चिप चिपी बारिश में, रिश्तो में काई नजर आयी
संवेदनाओ का आभाव, कोई साफ मुकर गया भाई
चिल चिलाती गर्मी का, देखो आज पारा गरम है
क्यों रिस रहे सभी घाव, हरा आज हर जख्म है
सर्द रातों की तरफ, आज रिश्ते सिमटे क्यों दिखते
भावनाओ के धरातल पर, लोग मिले लुटते पिटते
लोग आज मीठा बोलने से क्यों है कतराने लगे
लफ़्ज़ों की चाश्नी बना, सिर्फ कडुवाहट घोलने लगे
हवा का क्या है वोह, कभी भी रुख बदल जाएगी
अपनत्व भरे संसार में, एक बदनुमा दाग छोड जाएगी
मोड़ सको तो मोड़ लो, बांध लो पाश में यह हवा
बह न जाये संसार फिर, झूट लगेगी हर एक दुआ
- डॉ अभय