अनंत यात्रा का यह पड़ाव, इस बेंच की तरह देता गवाही चरैवेति-चरैवेति का मंत्र, चलना ही बस नियति है राहीसमय की खरपतवार जानिब, कभी संस्कारों की काई हैलेखनी का लेख अमिट यहाँ , सूखती कब यहाँ स्याही हैथक कर थोड़ी देर बैठ जाना, तो मुनासिब यहाँ लगता है आगे फिर एक नया पड़ाव, फिर तुम्हारा रास्ता तकता हैचलो बढ़ चलो उस पार की, सुखद उजालो की सुध आती है जीवन संघर्ष एक अनंत यात्रा, जैसे बने दिया और बाती है- प्रो. अभय
No comments:
Post a Comment